हौज़ा न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट में, हजरत आयतुल्लाह जवादी आमोली ने मुराक़बा के विषय पर बात करते हुए कहा: शैतान हमेशा लापरवाही के पलों को बढ़ाने और जोड़ने की कोशिश करता है ताकि हर एक लापरवाही का पल नई और गहरी लापरवाही की बुनियाद बन जाए। इसलिए जो व्यक्ति मार्ग-ए-हक (सच्चाई का रास्ता) पर है और अपने महान मकसद तक पहुंचना चाहता है, उसे हर काम में सावधान रहना चाहिए कि वह सीधा रास्ता न छोड़े और कोशिश करे कि शैतान को मौका न मिले। मतलब उसे हमेशा अल्लाह और उसकी खूबियों, जालाल और जमाल और उसकी नेअमत को याद रखना चाहिए। साथ ही मौत, क़ियामत, कब्र, जन्नत, जहन्नम, ईश्वरी हिसाब-किताब के लिए उपस्थित रहने को याद रखे ताकि फिसले नहीं और उसकी ये फिसलन दूसरों के लिए भी वजह न बने। "वे लोग जो अल्लाह को खड़े, बैठे और अपने बाजू के बल लेटे याद करते हैं" (सूर ए आले-इमरान, आयत 191)। यही "मुराक़ेबा है, जिसे अल्लामा तबातबाई जैसे बड़ों ने फ़लाह का बीज कहा।
राह-ए-ख़ुदा के मुसाफिर को पूरा दिन और हर वक्त उस शख्स की तरह रहना चाहिए जो परीक्षा की निगरानी करता हो और छात्रों को नकल से रोकने के लिए सिर उठाकर देखता हो। उसे अपनी नफ़्सानी इच्छाओं पर नजर रखनी चाहिए, हर वक्त उनको काबू में रखना चाहिए और अपने हर काम और वाक्य को, प्रकट होने से पहले, अपने उच्चतम मकसद (यानी अल्लाह की रज़ा और उसके करीब होना) के साथ जांचना चाहिए। यदि काम मकसद के मुताबिक न हो तो उसे छोड़ देना चाहिए।
उसे अपनी नफ़्सानी इच्छाओं की कड़ी निगरानी करनी चाहिए और ऐसी मजबूती से कि कोई भी बात या काम इस सफाई और चयन के प्रक्रिया से गुजरे बिना न हो।
बेदारी को मारफ़त और मुराक़ेबे की जरूरत है और जो व्यक्ति अपने दिल को लापरवाही से, अपनी नफ़्स को हवस से, अपने सोचने वाले दिमाग को असली जंगलीपन से और अपने व्यवहारिक दिमाग को व्यवहार में जंगलीपन से बचाए, वह जागरूक दिल वालों की मंडली में शामिल हो जाता है।
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